क्षमतावान फसल के शोध कार्यक्रमों का राष्ट्रीय समन्यवयक ने किया निरीक्षण

कृषि झारखंड
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रांची। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के आनुवांशिकी एवं पौधा प्रजनन विभाग में आईसीएआर की क्षमतावान फसल परियोजना में 6 प्रकार के क्षमतावान फसलों बाकला, रामदाना, बथुआ, पंखिया सेम, खेकसा, कुल्थी और बोदी फसल पर शोध कार्यक्रम चलाया जा रहा है। गुरुवार को क्षमतावान फसल के राष्ट्रीय समन्यवयक डॉ हनुमान लाल रेजर ने जनजातीय उपपरियोजना के अधीन 30 आदिवासी किसानों के 10 एकड़ खेत में लगी बाकला, बथुआ एवं रामदाना फसल के अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षणों का निरीक्षण किया।

रांची जिले के चान्हो प्रखंड के बयासी एवं कुल्लू गांवों के आदिवासी किसानों से क्षमतावान फसलों की संभावनाओं पर चर्चा की। किसानों ने दाल और सब्जी में उपयोग, स्वाद एवं जल्दी पकने के आधार पर बाकला को अपनी पहली पसंद बताया।

गांवों के दौरा के बाद डॉ हनुमान ने कांके स्थित बीएयू के शोध प्रक्षेत्रों में बाकला एवं बथुआ के प्रायोगिक प्रक्षेत्रों और रामदाना के 100 एवं फाबाबीन के 52 जर्मप्लाज्म पर शोध कार्यक्रमों को देखा। मौके पर एनपीबीपीजीआर, रांची केंद्र के वरीय वैज्ञानिक डॉ एसबी चौधरी एवं बीएयू में क्षमतावान फसल शोध कार्यक्रम के परियोजना अन्वेषक डॉ जयलाल महतो भी मौजूद थे। 

डॉ हनुमान लाल रेजर ने बताया कि किसानों एवं शोध प्रक्षेत्रों में क्षमतावान फसलों का प्रदर्शन काफी सराहनीय है। झारखंड में 6 प्रकार की क्षमतावान फसलों की खेती की काफी संभावनाएं हैं। रांची के क्षेत्रीय केंद्र के शोध कार्यक्रमों से प्रदेश से सटे समान जलवायु एवं मौसम वाले राज्यों बिहार, बंगाल, छत्तीसगढ एवं उड़ीसा के लिए भी काफी महत्वपूर्ण साबित होगी।

परियोजना अन्वेषक डॉ जयलाल महतो ने बताया कि आईसीएआर अंतर्गत नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्स (एनपीबीपीजीआर), नई दिल्ली द्वारा देश में क्षमतावान फसलों के उपयोग, गुण एवं भावी संभावनाओं पर  फसल प्रजाति का संरक्षण, नई किस्मों का विकास, जागरुकता अभियान एवं फसल विस्तारीकरण का कार्यक्रम चलाया जा रहा है। नेटवर्क शोध केंद्रों के माध्यम से देश में क्षेत्रीय स्तर पर 12 केंद्र कार्यरत हैं।

राज्य में क्षमतावान फसलें ग्रामीण क्षेत्रों एवं आदिवासी समुदाय के पोषण सुरक्षा का दशकों से सबसे सुगम माध्यम रहा है। इन फसलों की खेती प्रदेश में गौण होती जा रही है, जबकि इन फसलों की खेती से आदिवासी आजीविका के साथ-साथ पोषण सुरक्षा को बढ़ावा दिया जा सकता है। राज्य में बाकला की खेती की काफी संभावना है। केंद्र द्वारा बाकला फसल के सब्जी किस्मों के विकास का कार्य प्रगति पर है।