- खुले रोजगार के द्वार, ग्रामीणों की हो रही आमदनी
- रोजगार उपलब्ध कराने की दिशा में एक नई पहल
रांची। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा रोजगार उपलब्ध कराने की दिशा में नई पहल की गई है। इसके सकारात्मक परिणाम मिलने लगे हैं। मुख्यमंत्री की अभिनव सोच और कार्ययोजना से कोयले और लकड़ी का विकल्प ब्रिकेट झारखंड में तैयार किया गया है। ऐसा हुआ है राज्य के आकांक्षी जिले की सूची में शामिल और सबसे छोटे लोहरदगा में। यहां सिर्फ ब्रिकेट तैयार ही नहीं हुआ, बल्कि किस्को प्रखंड अंतर्गत पाखर पंचायत के तिसिया गांव में ब्रिकेटिंग प्लांट की स्थापना कर उत्पादन भी शुरू कर दिया गया है। वह दिन दूर नहीं जब लोहरदगा जैसा पिछड़ा जिला ब्रिकेट का उत्पादन कर पावर प्लांट, उद्योगों, ढाबों, ईंट भट्ठों, होटल एवं घरेलू कार्य में ईंधन के रूप में आपूर्ति करने में सक्षम होगा। ब्रिकेट ईको फ्रेंडली होने के साथ-साथ ताप एवं व्यय जैसे बिंदुओं पर भी कोयला की तुलना अधिक गुणवत्तापूर्ण है।
मिल रहा रोजगार, वन संरक्षण को भी बढ़ावा
ब्रिकेट उत्पादन के माध्यम से लोहरदगा के किस्को प्रखंड अंतर्गत पाखर पंचायत के तिसिया गांव एवं जंगल पर निर्भर कम से कम 15-20 अन्य गांव के लोगों को आय का एक नया साधन मिल रहा है। भविष्य में इसके बढ़ने की पूर्ण संभावना है। वर्तमान में स्थानीय स्त्री-पुरुष जंगल में गिरे सूखे पत्ते लाने और ब्रिकेटिंग प्लांट में बेचने का कार्य कर रहे हैं, जिसके लिए उन्हें हाथों-हाथ दो रुपया प्रति किलो की दर पर भुगतान किया जा रहा है। इस कार्य के माध्यम से लोगों की दैनिक आय में 100 से 300 रुपये तक की वृद्धि हो रही है। उनका आर्थिक सशक्तिकरण हो रहा है। वहीं दूसरी ओर, इस ईंधन के प्रयोग से जंगल में सूखे पत्तों के कारण लगने वाली आग में, जलावन के लिए लकड़ी की अवैध कटाई पर रोक एवं प्रदूषण स्तर में कमी आएगी। कोयले एवं लकड़ी की तुलना में ब्रिकेट का उपयोग उद्योगों के लिए भी आर्थिक रूप से किफायती होगा। इस पहल से क्षेत्र से होने वाले पलायन में कमी आ सकती है।

क्या है ब्रिकेट, कहां लगा है प्लांट
ब्रिकेट का उत्पादन सूखे पत्तों, पुआल, डंडियों, कृषि उत्पाद एवं वन के व्यर्थ प्रदार्थों से किया जाता है। ब्रिकेट की ऊष्मा लगभग कोयले के समान है। 5000 हेक्टेयर वन क्षेत्र से घिरे तिसिया गांव में 35 लाख की लागत से ब्रिकेटिंग प्लांट लगाया जा चुका है। प्लांट में ट्रायल के रूप में 15 टन ईंधन का उत्पादन किया जा रहा है। इसकी आपूर्ति जिले के कुछ चिह्नित ईंट भट्ठों में करने की तैयारी की जा चुकी है। ट्रायल के उपरांत इसे अन्य कारोबारों एवं लोगों को उपलब्ध कराया जायेगा। ब्रिकेट का उपयोग ढाबों, ईंट भट्ठों, होटल, पावर प्लांट, अन्य उद्योगों, एवं घरेलू कार्य, इत्यादि में किया जा सकता है।

पदाधिकारियों का प्रयास रंग लाया
जिले के वन प्रमंडल पदाधिकारी अरविंद कुमार बताते हैं कि स्थानीय लोगों को यह कार्य करने के लिए प्रेरित किया गया। उपायुक्त, जिला सहकारिता पदाधिकारी, एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट फेलो एवं जिला योजना पदाधिकारी द्वारा पाखर पंचायत के दुर्गम गांवों में जाकर जागरुकता अभियान चलाया गया है। इसके परिणामस्वरूप कार्य शुरू होने के चार दिन के अंदर ही 15 टन कच्चा माल इकट्ठा कर लिया गया है।

स्थानीय कमेटी कर रही है संचालन
परियोजना को सफल बनाने का बीड़ा वन सुरक्षा समिति एवं लैम्पस-पैक्स के समन्वय में गठित सहकारी समिति द्वारा उठाया गया है। इस समिति में दैनिक कार्यों के संपादन, माल उत्पादन और मार्केटिंग के लिए समूह बनाए गए हैं, जिन्होंने उचित प्रशिक्षण उपरांत सफलतापूर्वक कार्य आरंभ कर दिया है। प्रतिदिन 90 से 100 लोग कार्य करना प्रारंभ कर चुके हैं।