
रांची। राजनीतिक-सामाजिक संगठनों ने झारखंड की राजधानी रांची में अभिव्यक्ति के अधिकार के अंतर्गत धरना-प्रदर्शन के लिए जिला प्रशासन द्वारा नयी जगह तलाशने की कार्रवाई पर आश्चर्य जताया। उन्हें जानकारी मिली है कि इस काम के लिए रांची उपायुक्त ने 4 सदस्यीय टीम गठित की है। इसमें प्रशासन और पुलिस के अधिकारी शामिल हैं, जिन्हें धरना-प्रदर्शन स्थल का चयन कर उपायुक्त को सुझाव देना है।
इस जानकारी के बाद राजनीतिक दल, सामाजिक और जनसंगठन एवं सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधियों की संयुक्त बैठक माकपा कार्यालय में हुई। इसमें एआईकेएस के सुफल महतो, विरेंद्र कुमार, भाकपा के अजय सिंह, मासस के सुशांतो मुखर्जी, सामाजिक कार्यकर्ता नदीम खान, राजद के राजेश यादव और सीटू के प्रकाश विप्लव और एसके साहु शामिल थे। इसकी अध्यक्षता सुफल महतो ने की। बैठक में तय किया गया कि एक संयुक्त शिष्टमंडल जल्द ही उपायुक्त से मुलाकात करेगा।
सदस्यों ने कहा कि जिला प्रशासन की यह तत्परता पिछली सरकार के समय लिए गए एक निर्णय पर आधारित है, जिसमें कथित ट्रैफिक जाम की समस्या को नियंत्रित किए जाने के लिए केवल धरना-प्रदर्शन को आबादी के स्थल से दूर आयोजित किए जाने का निर्देश दिया गया था। यह तर्क हास्यास्पद है कि केवल धरना-प्रदर्शन से ही ट्रैफिक जाम होता है। हकीकत यह है कि धरना-प्रदर्शन रोज नहीं होता है। राजधानी में ट्रैफिक जाम रोज होता है। रांची शहर की ट्रैफिक संरचना में ही जटिलता है, क्योंकि झारखंड बनने से पहले यह एक जिला मुख्यालय का छोटा सा शहर था। आज से बीस साल पहले की तुलना में अब यहां चार पहिया और दो पहिया वाहनों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है।
सदस्यों का कहना है कि शहर में सुगम ट्रैफिक के लिए केवल अधूरे रिंग रोड को छोड़कर फ्लाई ओवर और संपर्क सड़क का काम राजधानी में तेज होते जा रहे ट्रैफिक के अनुरूप हुआ ही नहीं है।राजधानी में ट्रैफिक जाम की समस्या से निपटने के लिए नगर विकास विभाग को पहल कर ट्रैफिक विशेषज्ञ, नगर निगम, सिविल सोसाइटी और राजनीतिक पार्टियों से बात कर समस्या के स्थायी समाधान का उपाय करना चाहिए। रांची में सुगम ट्रैफिक के लिए फ्लाई ओवर का जाल बिछाना चाहिए, लेकिन जिला प्रशासन केवल धरना-प्रदर्शन को ही लक्षित कर कदम उठाने का प्रयास कर रहा है।