कैलाश सत्‍यार्थी सत्‍य के खोजी हैं: रामबहादुर राय

देश नई दिल्ली
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नई दिल्ली। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्‍यार्थी की पुस्‍तक ‘कोविड-19 सभ्‍यता का संकट और समाधान’ पर अपने विचार रखते हुए इंदिरा गांधी राष्‍ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) के अध्‍यक्ष रामबहादुर राय ने कहा कि इस पुस्‍तक से नई सभ्‍यता का शास्‍त्र रचा जा सकता है। इसमें विचार की अमीरी के सूत्र छिपे हैं और यह हमें पूर्णिमा के चांद का भी आश्‍वासन देती है।

पुस्तक परिचर्चा के दौरान आईजीएनसीए के अध्यक्ष रामबहादुर राय ने कहा कि यह पुस्‍तक अपने आप में मौलिक है। मौलिक इस अर्थ में है कि कोरोना को लेकर जो षड्यंत्र कथाएं रची जा रही हैं, उनसे दूर जाकर यह पुस्तक बात करती है। यह पुस्‍तक भारत की नेतृत्‍वकारी भूमिका का भी प्रमाण है। राय एक वेबिनार कार्यक्रम में बीते शुक्रवार को अपनी बात रख रहे थे।  

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने कहा कि कैलाश सत्‍यार्थी की पहचान है कि वे सत्‍य के खोजी हैं, जो इस पुस्‍तक में भी दिखती है। इस पुस्‍तक में विचार की अमीरी के सूत्र छिपे हैं, जिसे लोगों को यदि समझाया जाए तो पुस्‍तक की सार्थकता बढ़ेगी। आगे राय ने कोरोना महामारी और उससे उपजे संकट के संदर्भ में कहा कि अभी अमावस की रात जरूर है, लेकिन यह पुस्‍तक हमें पूर्णिमा के चांद का भी आश्‍वासन देती है।

राज्‍यसभा सांसद सोनल मानसिंह ने कहा कि कैलाशजी की पुस्‍तक को छापकर प्रभात प्रकाशन ने अपने प्रकाशन में एक रत्‍नमणि जोड़ने का काम किया है। यह पुस्‍तक गागर में सागर है।

कैलाश सत्‍यार्थी ने इस अवसर पर अपने संबोधन में कहा, ‘‘करुणा सकारात्‍मक, रचनात्‍मक सभ्‍यता के निर्माण का आधार है। करुणा में एक गतिशीलता है। एक साहस है और उसमें एक नेतृत्‍वकारी क्षमता भी है। करुणा एक ऐसी अग्नि है जो हमें बेहतर बनाती है। जब हम दूसरे को देखते हैं और उसके प्रति हमारे मन में एक जुड़ाव का भाव पैदा होता है, तो वह सहानुभूति है।”   

आगे उन्होंने कहा कि जब हम महसूस करते हैं‍ कि दूसरे का दुख, दर्द हमारी परेशानी है, तब वह संवेदनशीलता हो जाती है। लेकिन बिल्‍कुल अंदर का जो तत्‍व है वह है करुणा। यानी दूसरे के दुख-दर्द को अपना दुख-दर्द महसूस करके उसका निराकरण ठीक वैसे ही करें, जैसे हम अपने दुख-दर्द का करते हैं। महामारी से पीड़ित वर्तमान में दुनिया की जो स्थिति हो गई है, उससे निजात करुणा ही दिला सकती है। इसलिए करुणा का वैश्‍वीकरण समय की जरूरत है।”

इस अवसर पर गीतकार एवं सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्‍म सर्टिफिकेशन के अध्‍यक्ष प्रसून जोशी ने कैलाश सत्यार्थी के दार्शनिक पक्ष को इंगित करते  हुए कहा, ‘‘उनकी पुस्‍तक को पढ़ते हुए मेरा विश्‍वास पुख्‍ता हो गया कि उन्‍होंने उसी विषय को उठाया है, जिस पर मैं सोच रहा था कि उन्हें उठाना चाहिए। कैलाश जी किताब के जरिए जिन सवालों को उठाते हैं वे मनुष्‍य जाति की ऐसी मूल समस्‍याएं हैं, जो कल भी थीं, आज भी हैं और कल भी रहेंगी।’’

इस अवसर पर जोशी ने सत्‍यार्थी की पुस्तक से एक कविता का भी पाठ किया। लेखक एवं पूर्व राजनयिक डॉ पवन के वर्मा, नेहरू सेंटर, लंदन के निदेशक अमीश त्रिपाठी, राज्‍यसभा सांसद  सुधांशु त्रिवेदी के साथ-साथ आईजीएनसीए के सदस्य सचिव सच्चिदानंद जोशी ने अपने विचार रखे। परिचर्चा संचालन इंदिरा गांधी राष्‍ट्रीय कला केंद्र के डीन एवं कलानिधि के विभागाध्‍यक्ष प्रो रमेशचंद्र गौड़ ने किया।