टाटा स्‍टील फाउंडेशन के संवाद में आदिवासियों के मूलभूत मुद्दों पर हुई चर्चा

झारखंड
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जमशेदपुर । संवाद सम्मेलन का दूसरा दिन आदिवासी पहचान की कार्यशालाओं, वार्तालापों और सांस्कृतिक प्रदर्शनों पर केंद्रित रहा। एक्शन रिसर्च कलेक्टिव के तहत आईआईएम के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ अंकुर सरीन और कृषि के क्षेत्र में अपने उल्लेखनीय योगदान के लिए प्रसिद्ध पद्मश्री साबरमती ने कुछ मूलभूत मुद्दों पर जमीनी स्तर के अनुसंधानों पर चर्चा की। इन मुद्दों को आदिवासी समुदाय द्वारा ही चिन्हित किया था।

विशेषज्ञों और आदिवासी नेतृत्वकर्ताओं ने चर्चा की कि चुनौतियों से भरे इस समय के दौरान शासन का पारंपरिक मॉडलों ने इतने प्रभावकारी तरीके से किस प्रकार काम किया। चर्चा में समुदायों को साथ लाने के लिए शासन के अभिनव तरीकों और संकट का हल करने में समानांतर शासन प्रणालियों के बीच समन्वय को समझने का प्रयास किया गया।  भारतीय और अंतरराष्ट्रीय वैद्यों ने इस वर्ष के विषय ’सामाजिक परिवर्तन के लिए एक साथ आने’ के अनुरूप लोक स्वास्थ्य में बदलती परिस्थितियों पर मंथन किया।

आज देश के विभिन्न हिस्सों से आदिवासी नृत्यों का रंगारंग प्रस्तुतिकरण हुआ, जिसमें उत्तर-पूर्व से अरुणाचल प्रदेश के गालो जनजाति द्वारा पोपिर नृत्य से लेकर पश्चिम में गुजरात के डांगी भील नृत्य, महाराष्ट्र से वार्लिस द्वारा तिरपा नृत्य और ओडिशा से भूमीज नृत्य आदि शामिल थे। टेटसियो सिस्टर्स द्वारा प्रस्तुत ‘वोकल क्वारटेट’ ने नागालैंड की चाखेसांग नागा जनजति के विस्मृत संगीत को जीवंत कर दिया। ऑस्ट्रेलिया के जॉनी हकल ने ‘स्पिरीज मैन’ समेत अन्य गीत प्रस्तुत किए, जो आदिम जनजातियों और फिर से उठ खड़े होने उनकी क्षमता, उम्मीदें, समानता और शाश्वत जनजातीय भावना का चित्रण था। यह दोनों प्रस्तुतियां आज के मुख्य आकर्षण थे।

फिल्म स्क्रीनिंग के तहत ‘समुदाय के साथ’ और अशोक वेलू की ‘लुक एट द स्काई’ प्रदर्शित की गयी। प्रख्यात वकील रश्मि कात्यायन और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में कार्य करने वाली पेशेवर शोभा तिर्की के साथ बातचीत में आदिवासी अधिकारों और आज की दुनिया में इसके विभिन्न दृष्टिकोणों पर चर्चा की गई।

आज संवाद ने 10 राज्यों में 16 जनजातियों के पारंपरिक व्यंजनों का जश्न मनाया, जो कल से ऑनलाइन फूड एग्रीगेटर प्लेटफॉर्म ज़ोमैटो पर जमशेदपुर के लोगों के लिए उपलब्ध थे।

संवाद इकोसिस्टम ने पिछले 6 वर्षों में भारत के 27 राज्यों और 18 देशों के 117 जनजातियों के 30,000 से अधिक लोगों को एक साथ लाया है। दूर-दराज के क्षेत्रों के लिए क्षेत्रीय संवाद की अवधारणा को 2016 में अधिक-से-अधिक आदिवासी समुदायों तक पहुंचने और उनकी अनसुनी आवाजों को दुनिया के पटल पर लाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।